Friday, October 12, 2018

रुद्रनाथ यात्रा || RUDRANATH TRIP


RUDRANATH TEMPLE


 अगर आप पहाड़ों में घूमने का शौक रखते हैं और आप रोमांच की चरम सीमा में प्रवेश करना चाहते हैं तो मैं आपको आज एक ऐसे स्थान के बारे मैं बताने वाला हूँ , जहाँ आप एक बार घूमने आएंगे तो जीवनपर्यंत भूल नहीं पाएंगे .....जी हां, एक ऐसी जगह, जहाँ पहुंचने पर आप बादलों के ऊपर होते हैं। मतलब, बादलों को निहारने के लिए आपको नीचे देखना पड़ता है......एक ऐसा स्थान, जो पूरी दुनिया की दौड़ भाग और शोरगुल से कोषों दूर है....जहाँ भांति-भांति के फूल आपका मन मोह लेते हैं......जहाँ भगवान भोले से वास्तविक सरोकार होता है और जहाँ पहुंचना किसी एडवेंचर से कम नहीं.....अब तक आप समझ ही गए होंगे कि यह कोई अद्भुत स्थान है। जी हाँ, अद्भुत के साथ ही यह अकल्पनीय देवस्थान है रुद्रनाथ !   



   रुद्रनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो पंचकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं।



   इस स्थान की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है। इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है। गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करना नहीं भूलते। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव। बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पडाव है। इसके बाद जिस दुरूह चढाई से यात्रियों और सैलानियों का सामना होता है वो अकल्पनीय एवं रोमांचित करने वाली है। सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढ़ने के बाद यात्री पहुंचता है पुंग बुग्याल। यह अल्पाइन क्षेत्र में लम्बा बुग्याल (घास का मैदान) है जिसके ठीक सामने पहाडों की ऊंची चोटियों को देखने पर अद्भुत रोमांच महसूस होता है। गर्मियों में अपने पशुओं के साथ आस-पास के गांव के लोग यहां डेरा डालते हैं, जिन्हें पालसी कहा जाता है। अपनी थकान मिटाने के लिए थोडी देर यात्री यहां विश्राम करते हैं। ये पालसी थके हारे यात्रियों को चाय एवं अन्य खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराते हैं। आगे की कठिन चढाई में पग-पग पर चाय की दुकानें हैं। इस चढ़ाई को चढ़ने के लिए यही चाय की यही चुस्की अमृत का काम करती है। पुंग बुग्याल में कुछ देर आराम करने के बाद कलचात बुग्याल और फिर चक्रघनी की आठ किलोमीटर की खडी चढाई ही असली परीक्षा होती है। चक्रघनी जैसे कि नाम से प्रतीत होता है कि चक्र के समान गोल। इस दुरूह चढाई को चढते-चढते यात्रियों की हालत खस्ताहाल होने लगती है। चढते हुए मार्ग पर बांज व बुरांश के पेड़ तथा अन्य जड़ी-बूटियों के दुर्लभ वृक्षों की घनी छाया यात्रियों को राहत देती रहती है। रास्ते में मिलने वाले मीठे पानी की जलधाराएं यात्रियों के गले को तर करती है। इस घुमावदार चढाई के बाद थका-हारा यात्री ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है जो समुद्र तल से करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ल्वीटी बुग्याल से गोपेश्वर और सगर का दृश्य तो देखने लायक है ही, साथ ही रात में दिखाई देती दूर पौडी नगर की टिमटिमाती लाईट्स का आकर्षण भी कमतर नहीं। ल्वीटी बुग्याल में सगर और आसपास के गांव के लोग अपनी भेड़-बकरियों के साथ छह महीने तक डेरा डालते हैं। अगर पूरी चढाई एक दिन में चढना कठिन लगे तो यहां इन पालसियों के साथ एक रात गुजारी जा सकती है। यहां की चट्टानों पर उगी घास और उस पर चरती बकरियों का दृश्य पर्यटकों को अलग ही दुनिया का अहसास कराता है। यहां पर कई दुर्लभ जडी-बूटियां भी मिलती हैं।



   ल्वीटी बुग्याल के बाद करीब तीन किलोमीटर की चढाई के बाद आता है पनार बुग्याल। 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार बुग्याल रुद्रनाथ यात्रा मार्ग के ठीक मध्य में है। यहां से रुद्रनाथ की दूरी करीब 11 किमी रह जाती है। यह ऐसा स्थान है, जहां पर वृक्षों की मात्रा लगभग शून्य हो जाती है और मखमली घास के मैदान (बुग्याल) यकायक सारे दृश्य को परिवर्तित कर देते हैं। अलग-अलग किस्म के फूल तथा छोटी घास से लबरेज घाटियों के नजारे यात्रियों को मानो स्वर्ग का अहसास कराते हैं। जैसे-जैसे यात्री ऊपर चढता रहता है प्रकृति का उतना ही भव्य एवं अद्भुत रूप देखने को मिलता है। इतनी ऊंचाई पर इस सौंदर्य को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। पनार में डुमुक और कठगोट गांव के लोग अपने पशुओं के साथ डेरा डाले रहते हैं। यहां पर ये लोग यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं। पनार से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का जो विस्मयकारी दृश्य दिखाई देता है वो कहीं और से शायद ही दिखाई दे। नंदादेवी, कामेट, त्रिशूल, नंदाघुंटी आदि शिखरों का यहां से बड़ी नजदीकी से नजारा होता है। पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है पित्रधार में शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं। यहां पर यात्री अपने पितरों के नाम के पत्थर रखते हैं। यहां पर वन देवी के मंदिर भी हैं जहां पर यात्री श्रृंगार सामग्री के रूप में चूड़ी, बिंदी और चुनरी चढ़ाते हैं। रुद्रनाथ की चढ़ाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है। यात्रा मार्ग में तरह-तरह के फूलों की खुशबू यात्री को मदहोश करती रहती हैं। कुछ समय के लिए यह आभास होता है कि हम फूलों की घाटी में पहुंच गए हैं। अद्भुत दृश्य होता है वह.....


   

   पनार से पित्रधार होते हुए करीब 10-11 किमी के सफर के बाद यात्री पहुंचता है अपने गंतव्य स्थल एवं पंचकेदारों में चौथे केदार भगवान रुद्रनाथ के आभामण्डल में.... यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी पता नहीं है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं।


  

  मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाता है और उसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचता है। रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि यहां के सौंदर्य को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। यहाँ शायद ही ऐसी कोई जगह हो, जहां रोमांच न हो, हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार और मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं साथ ही बिना पूंछ वाले चूहे भी फुदकते दिखाई पड़ते हैं। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा ब्रह्मकमल भी यहां की ऊंचाइयों में बहुतायत में मिलते हैं। यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं; लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पडती है। रात्रि में रुकने के लिए टेंट और खाद्य समाग्री की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी स्वयं पर होती है। रुद्रनाथ के कपाट परंपरा के अनुसार खुलते और बंद होते हैं। शीतकाल में छह माह के लिए रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है। आप जिस हद तक प्रकृति की खूबसूरती का अंदाजा लगा सकते है, यकीन मानिए यह जगह उससे ज्यादा उम्दा और खूबसूरत है।



रुद्रनाथ कैसे पहुंचा जाता है :-


विश्व एवं देश के किसी कोने से आपको सर्वप्रथम पहले ऋषिकेश (उत्तराखंड) पहुंचना होगा। ऋषिकेश से ठीक पहले तीर्थनगरी हरिद्वार दिल्ली, हावडा से बडी रेल लाइन से जुडी है। देहरादून के निकट जौली ग्रांट में हवाईअड्डा भी है, जहां राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एवं अन्य शहरों से सीधी उडानें हैं। हरिद्वार या ऋषिकेश से आपको चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर का रुख करना होगा, जो ऋषिकेश से करीब 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से गोपेश्वर पहुंचने के लिए आपको बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक रात गोपेश्वर में रुकने के बाद अगले दिन आप अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं।


यात्रा के दौरान ठहरने की व्यवस्था :-


गोपेश्वर में GMVN के टूरिस्ट रेस्ट हाउस एवं पीडब्ल्यूडी बंगले के अलावा छोटे होटल और लॉज आसानी से मिल जाते हैं। गोपेश्वर से करीब 5 किमी आगे सगर नामक स्थान तक आप बस की सवारी या टैक्सी से पहुंच सकते हैं। उसके बाद वहाँ रुकने के लिए होटल हैं। यहां पर रहने, खाने-पीने, गाईड और घोड़े की व्यवस्था आसानी से की जा सकती है।  इसके बाद रुद्रनाथ पहुंचने के लिए यात्रियों को करीब 22 किलोमीटर की खडी चढाई चढनी होती है। यही चढाई श्रद्धालुओं की असली परीक्षा और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए चुनौती होती है। रास्ता पूरा जंगल का है लिहाजा यात्रियों को अपने साथ पूरा इंतजाम करके चलना होता है। पर्याप्त खाद्य सामग्री एवं गर्म कपडे साथ रखना समझदारी होती है अन्यथा आप पूरी यात्रा नहीं कर पाएंगे। बारिश व हवा से बचाव के लिए प्लास्टिक की बरसाती  भी उपलब्ध होनी चाहिए; क्योंकि यहां का मौसम कब बदल जाए कुछ पता नहीं चलता। यात्रा मार्ग पर तो सहायता हेतु पालसी मिल जाते हैं लेकिन रुद्रनाथ में रुकना हो तो सम्पूर्ण इंतजाम कर ही यात्रामार्ग की तरफ प्रस्थान करें।


किस ऋतु/महीने में करें यात्रा :-


यूं तो मई के महीने में जब रुद्रनाथ के कपाट खुलते हैं, तभी से यहां से यात्रा शुरू हो जाती लेकिन अगस्त-सितंबर के महीने में यहां खिले फूलों से लदी घाटियां लोगों का मन मोह लेती हैं। ये महीने ट्रेकिंग के शौकीन यात्रियों के लिए सबसे उपयुक्त हैं। गोपेश्वर में आपको स्थानीय गाइड और पोर्टर आसानी से मिल जाते हैं। पोर्टर आप न भी लेना चाहें लेकिन यदि पहली बार जा रहे हैं तो गाइड जरूर साथ रखें क्योंकि यात्रा मार्ग पर यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड या चिह्न नहीं हैं। पहाडी रास्तों में भटकने का डर रहता है। एक बार आप भटक जाएं तो सही रास्ते पर आना बिना मदद के मुश्किल हो जाता है।



( इस रोमांच भरी अद्भुत हिमालयी यात्रा का लुत्फ जरूर उठाएं और जिन यात्रियों ने यहाँ की यात्रा की हो, वो अपने अनुभव अवश्य साझा करें। )


PHOTOGRAPHY :- ANKIT CHANDRA BHATT



:- अनिरुद्ध पुरोहित (स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार )


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