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Rivers Migration एक चुनौती !
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अनिरुद्ध पुरोहित (स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार)
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सुविधाओं के अभाव में भारतीय नागरिकों की अपने मूल स्थान से सुविधायुक्त स्थानों की तरफ पलायित हो जाने की जब भी चर्चा होती है, सभी पर्वतीय एवं पलायनवादी राज्यों में उत्तराखंड शीर्ष स्थान पर होता है। इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला, उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में सुख सुविधाओं; अर्थात शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार का अभाव और दूसरा, आपदाओं का यहां के निवासियों पर अत्याधिक बोझ। हर वर्ष उत्तराखंड किसी-न-किसी आपदा को लेकर राष्ट्रीय सुर्खियों में रहता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल उत्तराखण्ड में ही है, लेकिन हाल ही में उत्तराखण्ड के ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की ओर से प्रकाशित हुई पहली 'अंतरिम पलायन रिपोर्ट' भयावह तस्वीर को उजागर करने वाली है। इस रिपोर्ट में साफतौर पर कहा गया है कि राज्यनिर्माण के बाद से यहां के अधिकतर निवासियों ने सुख-सुविधाओं के अभाव में अपना घर-बार छोड़ राज्य के बाहर या राज्य के सुविधासम्पन्न शहरों को अपना नया ठिकाना बना दिया है। पलायन के स्वरूप में विस्तार होने से एक नईं समस्या ने भी जन्म ले लिया है। हश्र यह है कि, जिन शहरों में लग्जरी लाइफ का सपना लिए लोग पलायित होकर गए थे, वहां जनसंख्या विस्फोट (1 वर्ग किलोमीटर में क्षमता से अधिक लोगों का होना), अत्यधिक ट्रैफिक और प्रदूषण जैसी समस्याओं ने विस्तारित रूप में अपने पांव पसार लिए हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद सरकार रिवर्स पलायन अर्थात जो लोग गाँव छोड़ पलायन कर शहरों में आए हैं, उन्हें आवश्यक सुविधायें मुहैया कराकर वापस अपने मूल स्थान भेजने को लेकर चिंतन करती दिखाई दे रही है। अब सवाल यह है कि क्या वास्तव में रिवर्स पलायन सम्भव है ? इसका जवाब हां में दिया जाय तो गलत नहीं होगा लेकिन कुछ शर्तों को पूरा करने के साथ ही यह जवाब देना तर्कसंगत प्रतीत होता दिखाई देगा। रिवर्स पलायन की पहली और मूल शर्त यही होगी कि पहाड़ में मूलभूत सुविधाओं का युद्धस्तर पर विकास किया जाय, जिससे लोगों को अपनी समस्याओं को निचले स्तर पर ही सुलझाने का अवसर प्राप्त हो सके। दूसरी मौलिक शर्त की बात करें तो राज्य के निवासियों को ग्रामस्तर पर ही ऐसा प्रशिक्षण दिया जाय कि वह राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक (कृषि) व द्वितीयक (निर्माण एवं विनिर्माण) क्षेत्रकों में काम कर लाभ कमाने के काबिल बन सकें । राज्य के लिए तीसरी चुनौती आदमखोर वन्यजीवों जैसे: बंदर, सुअर, नरभक्षी बाघ आदि पर नियंत्रण लगाने की होगी। क्योंकि वीरान पड़ते गांवों में अब आदमखोर वन्यजीव अपना बसेरा बनाने लगे हैं। चौथी प्रमुख शर्त आपदा प्रबंधन करने और इससे निपटने की होनी चाहिए, जिसके लिए मुस्तैद सुरक्षा दल और तकनीक का सामंजस्य बेहद जरूरी होना चाहिए।
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Rivers Migration एक चुनौती ! |
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार पहाड़ के लोगों को रोजगार एवं मूलभूत आवश्यकताओं के विकास हेतु संसाधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है जैसे कि, राज्य की महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रसाद योजना, गामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होम स्टे योजना, ग्रोथ सेंटरों का निर्माण, पिरूल नीति आदि-आदि। लेकिन यह प्रयास कछुआ गति से और बिना किसी नियोजन के किया जा रहा है, जो कि सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया है। अगर वास्तव में सरकार रिवर्स पलायन की अवधारणा को जमीन पर उतारने के लिए उत्सुक है, तो उसे उपरोक्त उल्लिखित समस्याओं का शीघ्रातिशीघ्र निवारण करना चाहिए और इसके लिए एक विजन बनाना चाहिए, तभी यह कार्यक्रम सफल हो पायेगा। अन्यथा इसे भी पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यक्रमों की ही तरह 'कोरी घोषणा' करार देने में लोग कतई परहेज नहीं करेंगे।
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