Monday, December 24, 2018

'अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना' के तहत उत्तराखंडवासियों को मिलेगा मुफ़्त इलाज !






प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा "आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना" प्रारम्भ की गयी है, जिसके अन्तर्गत उत्तराखंड प्रदेश में भी लगभग 5 लाख परिवारों को गम्भीर बीमारी के इलाज हेतु प्रतिवर्ष 5 लाख रूपये तक की निःशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। वर्तमान केंद्र सरकार की इस योजना के तहतउत्तराखंड सरकार द्वारा "अटल आयुष्मान उत्तराखण्ड योजना" प्रारम्भ की गई है। इस योजना के अंतर्गत छुटे हुए लगभग 18 लाख परिवारों को भी प्रतिवर्ष 5 लाख रूपये की निःशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इस प्रकार उत्तराखण्ड राज्य के समस्त 23 लाख परिवारों को सामान्य एवं गम्भीर बीमारी के ईलाज हेतु निःशुल्क  चिकित्सा सुविधा प्राप्त हो सकेगी।





    यह सुविधा राज्य के सरकारी चिकित्सालयों (जिसमें समस्त सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, जिला चिकित्सालय, संयुक्त चिकित्सालय एवं बेस चिकित्सालय सम्मिलित है) एवं सूचीब़द्ध निजी चिकित्सालयों में (रैफर करने के आधार पर) प्रदान की जायेगी। आपातकालीन स्थिति में सूचीबद्ध निजी चिकित्सालयों में बिना रैफर किये भी उपचार कराया जा सकता है। यह योजना पूर्णतः कैशलैस एवं पेपरलैस है।
अटल आयुष्मान उत्तराखण्ड योजना जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्तराखण्ड सरकार का एक ऐतिहासिक मजबूत कदम है, जो राज्य में निवासरत लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।






योजना का उद्देश्यः-

अटल आयुष्मान उत्तराखण्ड योजना का उद्देश्य राज्य के समस्त परिवारों को बेहतर चिकित्सा उपचार प्रदान करना एवं स्वास्थ्य पर होने वाले अतिरिक्त आर्थिक बोझ को कम करना है। योजना के परिणाम स्वरूप सामान्य जन मानस द्वारा बीमारी के उपचार में आने वाले अतिरिक्त जेब खर्च की एक सीमा तक भरपायी हो पायेगी।



लाभार्थी परिवार की पात्रताः-

योजना में राज्य कि समस्त परिवार पात्र है; लेकिन ऐसे परिवार जो सी0जी0एच0एस0 अथवा केन्द्रीय/अन्य सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना के द्वारा अच्छादित हैं, को पात्रता की श्रेणी में सम्मिलित नहीं किया गया है। 'अटल आयुष्मान उत्तराखण्ड योजना' के अन्तर्गत अपने परिवार की पात्रता के बारे में जानने हेतु राशन कार्ड संख्या/वोटर आई0डी0 EPICसंख्या/एम0एस0बी0वाई0 कार्ड संख्या के आधार पर निम्न प्रकार से जानकारी प्राप्त की जा सकती हैः-

★  नजदीकी सरकारी चिकित्सालय से।
★  सामुदायिक सेवा केन्द्र (Common Service Center)  से
★ मोबाईल एप (अटल आयुश्मान उत्तराखण्ड योजना) से एवं
★ वेबसाईट http://ayushmanuttarakhand.org  से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।


उपचार कराने से पूर्व लाभार्थी को पंजीकरण कर ’’गोल्डन कार्ड’’ बनवाना होगा। यह कार्ड आपके नजदीकी सरकारी चिकित्सालय/सामुदायिक सेवा केन्द्र (Common Service Center) से बनवाया जा सकता है। गोल्डन कार्ड बनवाने हेतु लाभार्थी को आधार कार्ड अपने साथ रखना आवश्यक है। आपके परिवार का प्रत्येक सदस्य अपना गोल्डन कार्ड बनवा सकता है।




उपचार कैसे प्राप्त करें ?

उपचार के समय लाभार्थी को अपना गोल्डन कार्ड एवं आधार कार्ड साथ में रखना आवश्यक है। यदि गोल्डन कार्ड पूर्व में नही बना है तो लाभार्थी को अपने साथ राशन कार्ड/मतदाता पहचान पत्र / एम0एस0बी0वाई0 कार्ड/आधार कार्ड पहचान पत्र हेतु साथ ले जाना आवश्यक होगा ताकि उसी समय गोल्डन कार्ड बनाकर लाभार्थी का नाम दर्ज कराते हुये उपचार दिया जा सके। उपचार के दौरान मरीज की सहायता के लिये प्रत्येक चिकित्सालय में 'आरोग्य मित्र’ तैनात रहेंगे, जिनके द्वारा मरीज को भर्ती कराने के समय आवश्यक सहयोग मिलेगा।





योजना की प्रमुख विषेशताऐं :



★ उत्तराखण्ड राज्य के समस्त परिवारों को चिकित्सालय में भर्ती होने पर निःशुल्क उपचार हेतु इस योजना का लाभ मिलेगा।
★ पात्र लाभार्थी परिवारों के सभी उम्र के सभी सदस्य इस योजना के अन्तर्गत लाभ ले सकते हैं।
★ लाभार्थी एवं उसके परिवार के सदस्यों का विवरण योजना के लिए तैयार किये गये मोबाईल एप-(अटल आयुष्मान  उत्तराखण्ड योजना) एवं वेब साईट http://ayushmanuttarakhand.orgके माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
★ उपचार के समय आधार कार्ड साथ में होना आवश्यक  है।
★ योजना से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए 104 हेल्प लाईन (टाॅल फ्री नम्बर) पर सम्पर्क किया जा सकता है ।




लाभार्थी को किन-किन बीमारियों में उपचार मिलेगा ?


योजना के अन्तर्गत उपचार हेतु कुल 1350 प्रकार के रोग अवस्थाओं को चिन्ह्ति किया है, जिनका विवरण निम्न हैः-
● हृदय रोग - 130 (पैकेजों की संख्या)
● नेत्र रोग - 42
● नाक कान गला रोग - 94
● हडडी रोग - 114
● मूत्र रोग - 161
● महिला रोग - 73
● शल्य रोग - 253
● न्यूरो सर्जरी, न्यूरो रेडियोलोजी एवं फ्लास्टिक सर्जरी, बर्न रोग - 115
● दन्त रोग - 09
● बाल रोग - 156
● मेडिकल रोग - 70
● कैन्सर रोग - 112
● अन्य - 21




Friday, October 12, 2018

रुद्रनाथ यात्रा || RUDRANATH TRIP


RUDRANATH TEMPLE


 अगर आप पहाड़ों में घूमने का शौक रखते हैं और आप रोमांच की चरम सीमा में प्रवेश करना चाहते हैं तो मैं आपको आज एक ऐसे स्थान के बारे मैं बताने वाला हूँ , जहाँ आप एक बार घूमने आएंगे तो जीवनपर्यंत भूल नहीं पाएंगे .....जी हां, एक ऐसी जगह, जहाँ पहुंचने पर आप बादलों के ऊपर होते हैं। मतलब, बादलों को निहारने के लिए आपको नीचे देखना पड़ता है......एक ऐसा स्थान, जो पूरी दुनिया की दौड़ भाग और शोरगुल से कोषों दूर है....जहाँ भांति-भांति के फूल आपका मन मोह लेते हैं......जहाँ भगवान भोले से वास्तविक सरोकार होता है और जहाँ पहुंचना किसी एडवेंचर से कम नहीं.....अब तक आप समझ ही गए होंगे कि यह कोई अद्भुत स्थान है। जी हाँ, अद्भुत के साथ ही यह अकल्पनीय देवस्थान है रुद्रनाथ !   



   रुद्रनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो पंचकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं।



   इस स्थान की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है। इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है। गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करना नहीं भूलते। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव। बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पडाव है। इसके बाद जिस दुरूह चढाई से यात्रियों और सैलानियों का सामना होता है वो अकल्पनीय एवं रोमांचित करने वाली है। सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढ़ने के बाद यात्री पहुंचता है पुंग बुग्याल। यह अल्पाइन क्षेत्र में लम्बा बुग्याल (घास का मैदान) है जिसके ठीक सामने पहाडों की ऊंची चोटियों को देखने पर अद्भुत रोमांच महसूस होता है। गर्मियों में अपने पशुओं के साथ आस-पास के गांव के लोग यहां डेरा डालते हैं, जिन्हें पालसी कहा जाता है। अपनी थकान मिटाने के लिए थोडी देर यात्री यहां विश्राम करते हैं। ये पालसी थके हारे यात्रियों को चाय एवं अन्य खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराते हैं। आगे की कठिन चढाई में पग-पग पर चाय की दुकानें हैं। इस चढ़ाई को चढ़ने के लिए यही चाय की यही चुस्की अमृत का काम करती है। पुंग बुग्याल में कुछ देर आराम करने के बाद कलचात बुग्याल और फिर चक्रघनी की आठ किलोमीटर की खडी चढाई ही असली परीक्षा होती है। चक्रघनी जैसे कि नाम से प्रतीत होता है कि चक्र के समान गोल। इस दुरूह चढाई को चढते-चढते यात्रियों की हालत खस्ताहाल होने लगती है। चढते हुए मार्ग पर बांज व बुरांश के पेड़ तथा अन्य जड़ी-बूटियों के दुर्लभ वृक्षों की घनी छाया यात्रियों को राहत देती रहती है। रास्ते में मिलने वाले मीठे पानी की जलधाराएं यात्रियों के गले को तर करती है। इस घुमावदार चढाई के बाद थका-हारा यात्री ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है जो समुद्र तल से करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ल्वीटी बुग्याल से गोपेश्वर और सगर का दृश्य तो देखने लायक है ही, साथ ही रात में दिखाई देती दूर पौडी नगर की टिमटिमाती लाईट्स का आकर्षण भी कमतर नहीं। ल्वीटी बुग्याल में सगर और आसपास के गांव के लोग अपनी भेड़-बकरियों के साथ छह महीने तक डेरा डालते हैं। अगर पूरी चढाई एक दिन में चढना कठिन लगे तो यहां इन पालसियों के साथ एक रात गुजारी जा सकती है। यहां की चट्टानों पर उगी घास और उस पर चरती बकरियों का दृश्य पर्यटकों को अलग ही दुनिया का अहसास कराता है। यहां पर कई दुर्लभ जडी-बूटियां भी मिलती हैं।



   ल्वीटी बुग्याल के बाद करीब तीन किलोमीटर की चढाई के बाद आता है पनार बुग्याल। 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार बुग्याल रुद्रनाथ यात्रा मार्ग के ठीक मध्य में है। यहां से रुद्रनाथ की दूरी करीब 11 किमी रह जाती है। यह ऐसा स्थान है, जहां पर वृक्षों की मात्रा लगभग शून्य हो जाती है और मखमली घास के मैदान (बुग्याल) यकायक सारे दृश्य को परिवर्तित कर देते हैं। अलग-अलग किस्म के फूल तथा छोटी घास से लबरेज घाटियों के नजारे यात्रियों को मानो स्वर्ग का अहसास कराते हैं। जैसे-जैसे यात्री ऊपर चढता रहता है प्रकृति का उतना ही भव्य एवं अद्भुत रूप देखने को मिलता है। इतनी ऊंचाई पर इस सौंदर्य को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। पनार में डुमुक और कठगोट गांव के लोग अपने पशुओं के साथ डेरा डाले रहते हैं। यहां पर ये लोग यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं। पनार से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का जो विस्मयकारी दृश्य दिखाई देता है वो कहीं और से शायद ही दिखाई दे। नंदादेवी, कामेट, त्रिशूल, नंदाघुंटी आदि शिखरों का यहां से बड़ी नजदीकी से नजारा होता है। पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है पित्रधार में शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं। यहां पर यात्री अपने पितरों के नाम के पत्थर रखते हैं। यहां पर वन देवी के मंदिर भी हैं जहां पर यात्री श्रृंगार सामग्री के रूप में चूड़ी, बिंदी और चुनरी चढ़ाते हैं। रुद्रनाथ की चढ़ाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है। यात्रा मार्ग में तरह-तरह के फूलों की खुशबू यात्री को मदहोश करती रहती हैं। कुछ समय के लिए यह आभास होता है कि हम फूलों की घाटी में पहुंच गए हैं। अद्भुत दृश्य होता है वह.....


   

   पनार से पित्रधार होते हुए करीब 10-11 किमी के सफर के बाद यात्री पहुंचता है अपने गंतव्य स्थल एवं पंचकेदारों में चौथे केदार भगवान रुद्रनाथ के आभामण्डल में.... यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी पता नहीं है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं।


  

  मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाता है और उसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचता है। रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि यहां के सौंदर्य को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। यहाँ शायद ही ऐसी कोई जगह हो, जहां रोमांच न हो, हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार और मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं साथ ही बिना पूंछ वाले चूहे भी फुदकते दिखाई पड़ते हैं। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा ब्रह्मकमल भी यहां की ऊंचाइयों में बहुतायत में मिलते हैं। यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं; लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पडती है। रात्रि में रुकने के लिए टेंट और खाद्य समाग्री की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी स्वयं पर होती है। रुद्रनाथ के कपाट परंपरा के अनुसार खुलते और बंद होते हैं। शीतकाल में छह माह के लिए रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है। आप जिस हद तक प्रकृति की खूबसूरती का अंदाजा लगा सकते है, यकीन मानिए यह जगह उससे ज्यादा उम्दा और खूबसूरत है।



रुद्रनाथ कैसे पहुंचा जाता है :-


विश्व एवं देश के किसी कोने से आपको सर्वप्रथम पहले ऋषिकेश (उत्तराखंड) पहुंचना होगा। ऋषिकेश से ठीक पहले तीर्थनगरी हरिद्वार दिल्ली, हावडा से बडी रेल लाइन से जुडी है। देहरादून के निकट जौली ग्रांट में हवाईअड्डा भी है, जहां राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एवं अन्य शहरों से सीधी उडानें हैं। हरिद्वार या ऋषिकेश से आपको चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर का रुख करना होगा, जो ऋषिकेश से करीब 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से गोपेश्वर पहुंचने के लिए आपको बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक रात गोपेश्वर में रुकने के बाद अगले दिन आप अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं।


यात्रा के दौरान ठहरने की व्यवस्था :-


गोपेश्वर में GMVN के टूरिस्ट रेस्ट हाउस एवं पीडब्ल्यूडी बंगले के अलावा छोटे होटल और लॉज आसानी से मिल जाते हैं। गोपेश्वर से करीब 5 किमी आगे सगर नामक स्थान तक आप बस की सवारी या टैक्सी से पहुंच सकते हैं। उसके बाद वहाँ रुकने के लिए होटल हैं। यहां पर रहने, खाने-पीने, गाईड और घोड़े की व्यवस्था आसानी से की जा सकती है।  इसके बाद रुद्रनाथ पहुंचने के लिए यात्रियों को करीब 22 किलोमीटर की खडी चढाई चढनी होती है। यही चढाई श्रद्धालुओं की असली परीक्षा और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए चुनौती होती है। रास्ता पूरा जंगल का है लिहाजा यात्रियों को अपने साथ पूरा इंतजाम करके चलना होता है। पर्याप्त खाद्य सामग्री एवं गर्म कपडे साथ रखना समझदारी होती है अन्यथा आप पूरी यात्रा नहीं कर पाएंगे। बारिश व हवा से बचाव के लिए प्लास्टिक की बरसाती  भी उपलब्ध होनी चाहिए; क्योंकि यहां का मौसम कब बदल जाए कुछ पता नहीं चलता। यात्रा मार्ग पर तो सहायता हेतु पालसी मिल जाते हैं लेकिन रुद्रनाथ में रुकना हो तो सम्पूर्ण इंतजाम कर ही यात्रामार्ग की तरफ प्रस्थान करें।


किस ऋतु/महीने में करें यात्रा :-


यूं तो मई के महीने में जब रुद्रनाथ के कपाट खुलते हैं, तभी से यहां से यात्रा शुरू हो जाती लेकिन अगस्त-सितंबर के महीने में यहां खिले फूलों से लदी घाटियां लोगों का मन मोह लेती हैं। ये महीने ट्रेकिंग के शौकीन यात्रियों के लिए सबसे उपयुक्त हैं। गोपेश्वर में आपको स्थानीय गाइड और पोर्टर आसानी से मिल जाते हैं। पोर्टर आप न भी लेना चाहें लेकिन यदि पहली बार जा रहे हैं तो गाइड जरूर साथ रखें क्योंकि यात्रा मार्ग पर यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड या चिह्न नहीं हैं। पहाडी रास्तों में भटकने का डर रहता है। एक बार आप भटक जाएं तो सही रास्ते पर आना बिना मदद के मुश्किल हो जाता है।



( इस रोमांच भरी अद्भुत हिमालयी यात्रा का लुत्फ जरूर उठाएं और जिन यात्रियों ने यहाँ की यात्रा की हो, वो अपने अनुभव अवश्य साझा करें। )


PHOTOGRAPHY :- ANKIT CHANDRA BHATT



:- अनिरुद्ध पुरोहित (स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार )


Sunday, September 23, 2018

मोदीकेयर : "आयुष्मान भारत योजना"





आयुष्मान भारत योजना या मोदीकेयर भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना हैं, जिसे 23 सितम्बर 2018 को पूरे भारत में झारखंड की राजधानी रांची से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉन्च किया। 2018 के बजट सत्र में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस योजना की घोषणा की थी। इस योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराना है। इसके अन्तर्गत आने वाले प्रत्येक परिवार को 5 लाख तक का कैशरहित स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जायेगा। 10 करोड़ बीपीएल धारक परिवार इस योजना का प्रत्यक्ष लाभ उठा सकेगें। इसके अलावा बाकी बची आबादी को भी भविष्य में इस योजना के अन्तर्गत लाने की योजना है।



योजना के उद्देश्य:



उचित स्वास्थ्य बीमा सुविधा उपलब्ध कराना :


 इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में स्वास्थ्य से संबंधित आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराना है। इस योजना के लागू होने के पश्चात गरीब व्यक्ति भी बीमारी या अन्य किसी स्थिति में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कर पायेंगे, ऐसी स्थिति में पैसो की कमी उनके स्वास्थ्य के आड़े नहीं आयेगी।


कुल लाभान्वित जनता :


इस योजना के द्वारा भारत के करीब 10 करोड़ परिवार लाभान्वित होंगे। एक बार यह बीमा पॉलिसी लेने पर पूरे परिवार के  सदस्य इसका लाभ ले सकते हैं।  इस प्रकार करीब 50 करोड़ लोगों को इसका फायदा मिलेगा।



कुल बीमा राशि :


 इस योजना के द्वारा एक परिवार को एक साल में 5 लाख रुपए तक की सहायता दी जाएगी, जिसे जरूरतमंद व्यक्ति विकट परिस्थिति में उपयोग कर सकेगा।


योजना के अंतर्गत परिवार के सदस्यों की संख्या : 


शुरुआत में इस योजना के अंतर्गत परिवार के 5 सदस्यों को कवर किया जायेगा, परंतु बाद में इसके अंतर्गत पूरे परिवार को लाभ देने की बात भी कही जा रही है। इस विषय में फ़िलहाल संबंधित समिति में अभी बातचीत जारी है।




लाभ लेने वाले लोग :


● इस योजना के अंतर्गत केवल वही लोग लाभ ले सकते हैं जिनका नाम SECC-2011 के अंतर्गत रजिस्टर हो।
● ऐसा परिवार जो कच्चे मकान या छप्पर में रह रहा हो।
● ऐसा परिवार जिनमें 16 से 59 वर्ष की उम्र तक का कोई वयस्क सदस्य न हो।
● ऐसा परिवार जिसकी जिम्मेदारी कोई महिला संभाल रही हो और उसके परिवार में कोई 16 से 59 वर्ष तक का पुरुष सदस्य न हो।
● शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति, जिसके परिवार में कोई भी शारीरिक रूप से सक्षम व्यक्ति न हो
● एससी एसटी परिवार और भूमिहीन परिवार, जिनकी आजीविका का मुख्य स्रोत मानवीय श्रम हो।


आधार की अनिवार्यता


अगर कोई व्यक्ति इस योजना का लाभ लेना चाहता है तो उसके लिए यह आवश्यक है की व्यक्ति का स्वयं का पहचान पत्र उसका आधार कार्ड उसके पास हो. इसके अतिरिक्त व्यक्ति का आधार कार्ड उसके परिवार आईडी से भी लिंक होना चाहिये, अगर ऐसा नहीं होता है तो वह व्यक्ति इस सुविधा से वंचित रह जायेगा।



कुछ प्रमुख बिंदु :


★ हर परिवार का 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कराया जाएगा। इस बीमा कवर से आप छोटे और बड़े सभी तरह के अस्पतालों में इलाज करा सकेंगे।
★ अस्पताल में भर्ती होने से पहले के स्वास्थ्य संबंधी खर्चे और अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद के खर्चे भी इसमें शामिल होंगे।
★ पॉलिसी लेने के पहले दिन से ही ये सारी सुविधाएं मिलने लगेंगी। अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में आने जाने का भत्ता भी दिया जाएगा।
★ इस योजना के तहत आप देश के किसी भी हिस्से में इलाज करा सकेंगे।
★ किसी भी एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में इलाज को ट्रांसफर कराया जा सकता है।
★ आयुष्मान भारत योजना के रेट में इलाज संबंधी सभी तरह के (दवाई, जांच, ट्रांसपोर्ट, इलाज पूर्व, इलाज पश्चात के खर्चे) खर्चे शामिल होंगे।
★ भुगतान में देरी पर बीमा कंपनी को देना होगा हर हफ्ते एक प्रतिशत ब्याज।


Saturday, September 22, 2018

चार भाई महासू ....!

जय महासू देवता !


महासू देवता का मंदिर उतराखंड के देहरादून जिले के सुदूरवर्ती जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के हनोल स्थित
डॉ सुभाष चन्द्र पुरोहित
तमसा(टौंस) नदी के किनारे स्थित है। पौराणिक कथा एवं स्थानीय नागरिकों की मान्यतानुसार प्राचीन काल में सम्पूर्ण जौनसार बावर क्षेत्र किरमीच नामक राक्षस से भयभीत एवं ग्रसित था। राक्षस द्वारा हर रोज किसी न किसी मानव को अपना शिकार बनाकर भक्षण किया जाता था। राक्षस के इस अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए हुणाभाट नामक ब्राह्मण ने भगवान शिव एवं शक्ति की उपासना की, जिससे कि राक्षस के वध के लिए चार भाई महासू की उत्पति हुई। परंतु कुछ स्थानीय निवासियों के अनुसार हुणाभाट नामक ब्राह्मण ने शिलिगुडी महाराज के सहयोग से कश्मीर के तत्कालीन महाराजा को अपने क्षेत्र में किरमीच राक्षस के आतंक की व्यथा से अवगत कराया। उन्होंने उपाय स्वरूप बताया कि कुछ समय पश्च्यात आपके घर में गाय के दो बछडों का जन्म होगा। आप एक बात का ध्यान रखना कि बछडों के जन्म होते ही उनको बिना दुग्धपान कराए आप इन बछड़ों की जोड़ी बनाकर हल जोतना। ब्राहमण द्वारा ऐसा ही किया गया, परंतु भूलवश बछडों को दूग्ध पान करा दिया गया था।  महेंद्रथ में जब बछडों को जोतकर हल लगाना प्रारम्भ किया तो सबसे पहले बाशिक महाराज की उत्पति हुई, परंतु हल की नोक उनकी एक आँख में लग जाने के कारण वो एक आंख से दृष्टि विहीन हो गए। फिर कुछ आगे चलकर दूसरे महासू की उत्पति हुई, परन्तु हल की नोक उनके घुटने पर लगने के कारण वह चलने फिरने में असमर्थ हो गए और बैठे ही रहने के कारण उन्हें "बोठा महासू" महाराज कहते हैं। हल जैसे-जैसे आगे बड़ा, तीसरे महासू की उत्पत्ति हुई किन्तु हल की नौक उनके कान में लगने के कारण वो बहरे पैदा हुए। अंततः सकुशल चौथे महासू देवता प्रकट हुए जिन्हें हल ने कोई नुकसान नहीं पहुँचाया और कालांतर में वह चाल्दा नाम से प्रसिद्ध हुए।

   चारों महासुओं की उत्पति के पश्च्यात महासू देवताओं ने अपने प्राक्रम से किरमीच नामक दैत्य का अंत कर सम्पूर्ण क्षेत्र को राक्षस के भय से मुक्ति दिलायी, तब से ही महासू देवता स्थानीय न्याय एवं रक्षा के स्वरूप के रूप में पूजनीय हैं।


महासू देवता मंदिर

   

   सबसे बड़े भाई बाशिक महाराज का मंदिर महेंद्रथ में, दूसरे बोठा महाराज का मंदिर हनोल, तीसरे महासू देवता पवाशी में एवं चाल्दा महाराज जो कि सम्पूर्ण जौनसार बावर मे निरंतर भ्रमण करते रहने के लिए विख्यात हैैं।





(उपरोक्त लेख स्थानीय निवासियों के साथ वार्तालाप से प्राप्त जानकारी पर आधारित है)

Friday, September 14, 2018

सावित्री देवी को मिला "रुद्र गौरव सम्मान 2018"

रुद्रप्रयाग विधायक श्री भरत सिंह चौधरी जी श्रीमती सावित्री देवी को सम्मानित करते हुए ।


वर्तमान में जब सम्पूर्ण मानवता में सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वास को लेकर ऊहापोह की स्थिति चल रही
अनिरुद्ध पुरोहित
(स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार)
हो, साथ ही पूरे वैश्विक परिवेश में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण को लेकर चिंता जताई जा रही हो,
तो सामाजिक बुराइयों और अंधविश्वासी धारणाओं को मात देकर, पर्यावरण संरक्षण कर समाज को संदेश देने वाली सावित्री देवी जैसी महिलाओं द्वारा किये गए सामाजिक बदलावों एवं कार्यों का उल्लेख करना जरूरी है।


   श्रीमती सावित्री देवी उत्तराखंड राज्य के जनपद रुद्रप्रयाग में तल्लानागपुर क्षेत्रान्तर्गत ग्राम क्वीली की निवासी हैं। व्यवहार में सौम्यता और कंठ में मीठी वाणी धारण किए, हर वक्त चेहरे पर मुस्कान लेकर चलना ही इनका विस्तृत परिचय है। 


"रुद्र गौरव सम्मान 2018" से सम्मानित श्रीमती सावित्री देवी


   कहते हैं कि जो सत्य के मार्ग पर चलता है उसकी राह में अनेक बाधाएं आती हैं लेकिन अंततः जीत उसी की होती है। कुछ ऐसी ही बाधाएं सावित्री देवी की राह में भी आन पड़ी, जब उन्होंने यह निश्चय किया कि उन्हें पीपल का पेड़ अपने गांव के जंगल में लगाना है। तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि पीपल का पेड़ लगाना उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को मंहगा साबित होगा और समाज में उनके लिए अनेक बातें बोली जाएंगी। चूंकि श्रीमती सावित्री देवी सर्वसम्पन्न परिवार से थी और दो होनहार बच्चों की माँ थीं, इसलिए इस सामाजिक कुरीति; कि "जिनके बच्चे होते हैं वो पीपल नहीं लगाते अर्थात जो पुत्रविहीन होते हैं उन्हीं को पीपल का वृक्ष लगाना शोभा देता है" के कारण समाज ने उन्हें और उनकी कार्यनैतिकता पर प्रश्न चिह्न लगा दिए। मन से दृढ़निश्चयी सावित्री ने आस-पड़ोस के लोगों और समाज की बातों से हार न मानते हुए बड़े-बुजुर्गों की शरण ली। लेकिन बड़े-बुजुर्गों में यह अंधविश्वास कूट-कूट कर भरा हुआ था कि 'पीपल वही लगाता है जो पुत्रविहीन होता है।' अंततः उन्होंने युवाओं और नवचेतना का संचार करने वाले लोगों के समक्ष अपनी व्यथा रखी। युवा तो होते ही परिवर्तनवादी हैं। युवाओं ने न सिर्फ सावित्री देवी को इस पुनीत कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित किया बल्कि इस कार्य में उनका सहयोग भी किया। 


पीपल का वृक्ष


   भारतीय संस्कृति में पीपल को देववृक्ष की संज्ञा दी गई है। इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। स्कन्दपुराण में वर्णित है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप है। भगवान कृष्ण अपने उपदेश में कहते हैं कि समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ। स्वयं भगवान ने अपनी उपमा पीपल को देकर उसके देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं। पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं।


शुभ कार्यों में उपयोगी पीपल की पत्तियां


   सावित्री देवी ने पीपल से सम्बंधित अंधविश्वास को न सिर्फ गलत साबित किया है बल्कि समाज को भी उसे नकारने पर मजबूर किया है। आज सावित्री देवी अपने ग्राम क्वीली और उसके आसपास के क्षेत्रों में अनेक पीपल और वट वृक्ष रोपित कर चुकी हैं। यहाँ तक कि उन्होंने पूरे अनुष्ठान और वैदिक मान्यतानुसार पीपल और वटवृक्ष (बरगद) की शादी भी धूमधाम से करवाई है और समाज को प्रकृति एवं पेड़-पौधों को अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ने के बजाय उनसे प्रेम करने और उनके प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन करने का संदेश दिया है। सावित्री पर्यावरण के प्रति बेहद संवेदनशील हैं और वे अपने द्वारा लगाए गए पौधों को भी अपने बच्चों की तरह पालती हैं। वह हमेशा रोपित पौधों को जल, खाद, गाय का दूध और आवश्यक तत्वों को देने के लिए जाती हैं। आज से कुछ वर्ष पहले की बात है, जब सावित्री देवी ने पीपल के वृक्ष का रोपण किया और उसकी देखभाल शुरू की। प्रारम्भ में तो पौधे की वृद्धि सामान्य थी किन्तु अचानक पौधा कमजोर हो गया और अपने जीवन के अंतिम काल में प्रवेश करने लगा। सभी प्रयोग करने के बाद भी जब पीपल का पौधा स्वस्थ न हो सका तो सावित्री देवी ने अपने कुलब्राह्मणों से इसकी वजह जाननी चाही। निवारण के रूप में ब्राह्मण ने कहा कि "पीपल के वृक्ष की जड़ों में दूध प्रवाहित करने से पीपल का पौधा कभी मृत नहीं हो सकता" । तब सावित्री देवी ने जब तक घर में दूध देने वाली गाय रही, तब तक पीपल की जड़ों में गाय का दूध प्रवाहित कर उस वृक्ष को जीवित रखने में सफलता पाई। 


सावित्री देवी द्वारा लगाए गए वटवृक्ष के साथ उनके गाँव क्वीली के युवा


   गौरतलब है कि प्रकृति समस्त जीवों के जीवन का मूल आधार है। प्रकृति का संरक्षण एवं संवर्धन जीव जगत के लिए बेहद ही अनिवार्य है। प्रकृति पर ही पर्यावरण निर्भर करता है। यदि प्रकृति समृद्ध एवं सन्तुलित होगी तो पर्यावरण भी अच्छा होगा और मौसम भी समयानुकूल सन्तुलित रहेगा। प्राकृतिक आपदाओं से बचने और पर्यावरण को शुद्ध बनाने के लिए पेड़ों का होना बहुत जरूरी है। पुराणों में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि एक पेड़ लगाने से उतना ही पुण्य मिलता है, जितना कि दस गुणवान पुत्रों से यश की प्राप्ति होती है। इसलिए, जिस प्रकार हम अपने बच्चों की परवरिश बड़ी तन्मयता से करते हैं, उसी तन्मयता से हमें सावित्री देवी के व्यक्तित्व से सीख लेकर जीवन में पेड़-पौधों को भी अपने बच्चों के समान प्रेम करना चाहिए। बेशक हममें सावित्री देवी की तरह पुण्यात्मा नहीं है लेकिन तब भी हमें पेड़ लगाकर पुण्य हासिल करने का प्रयत्न करना चाहिए।



   श्रीमती सावित्री देवी को "रुद्र गौरव सम्मान 2018" से सम्मानित किया गया है। यह उन सभी प्रकृति प्रेमियों का सम्मान है जो निरंतर प्रकृति की चिंता कर उसे संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। 





(Savitri Devi got "Rudra Gaurav Samman 2018"
At present, when the situation of hypocrisy about the social evils and superstitions in all humanity is going on, in addition, there is concern about climate change and the environment in the entire global environment by defeating social evils and superstitious beliefs, protecting the environment. To mention the social changes and the work done by women like Savitri Devi, who has given message to society.

   Mrs. Savitri Devi is a resident of Gram Quilli under Tallanagpur area in Uttarakhand's Rudraprayag district. Having a sweet word in behavior and softness in the throat, it is a brief introduction to face smiles all the time.
It is said that many obstacles arise in the path of truth which runs on the path of truth but ultimately victory is of the same. Some similar obstacles also took place in the path of Savitri Devi, when they decided that they had to plant the Peepal tree (Ficus religiosain) the forest of their village. Then they would not have thought that planting a peepal tree would prove costly to their social status and many things would be spoken for them in society. Since Mrs. Savitri Devi was from the family and was the mother of two promising children, hence this social evil; Due to the fact that "Those who have children, do not planting peepal, which means that they are sonless , they planting a tree of Peepal", because of which the society put question marks on them and their work ethics. Savitri, determined by heart, took refuge in the elderly by not accepting the neighbors and the things of the society. But in the elderly, this superstition was full of decaying, 'People impose only what is childless.' Eventually, he kept his sorrow in front of the youth and the people who started the Navchatna. Young people are change-tuned as soon as they are. The youth not only encouraged Savitri Devi to perform this sacred work but also supported her in this work.
   In Indian culture, Peepal has been given the name of Devvriksha. At the touch of its sattvik effect, the consciousness is palpated and swell. It is described in the Scandapurana that Vishnu in the origin of Peepal, Keshava in the stem, Narayan in the branches, Shree Hari in the leaves and Achyut always live with all the gods in the fruit. Peepal is a living and completely idiomatic form of Lord Vishnu. Lord Krishna says in his sermon that in all the trees I am the tree of Peepal. God himself has expressed his divinity and divinity by giving up his likeness to Peepal. It is mentioned in the scriptures that the worship of Peepal is worshiped by the entire God himself. Peepal tree planter's lineage tradition is never destroyed. Peepal's service providers receive goodwill.
   Savitri Devi has not only proved superstition related to Peepal but has also forced society to refuse it. Today, Savitri Devi has planted several yellow and white trees in her village Quilii and its surroundings. Even so, they have arranged the marriage of peepal and Vatvriksha (banyan) in full ritual and Vedic beliefs, and instead of nurturing the nature and tree plants in the boats of superstitions instead of loving them and discharging their responsibilities towards them. Message is delivered. Savitri is very sensitive to the environment and they keep the plants planted by them like their own children. He always goes to give planted plants water, fertilizers, cow's milk and essential elements. It is a few years ago today, when Savitri Devi planted Pepal's tree and started taking care of it. Initially, the growth of the plant was normal but suddenly the plant became weak and started entering the last period of his life. Even after all the experiments, when Peepal's plant could not be healthy, Savitri Devi wanted to know the reasons for her celibinals. In the form of the prevention, the Brahmin said that "Peepal Plant Can Never Be Dead By Streaming Milk in the roots of Peepal tree". Then Savitri Devi was able to keep the tree alive by feeding cow's milk in the roots of Peepal till it was giving milk in the house.
   Significantly, nature is the basis of the life of all living beings. Conservation and promotion of nature is absolutely essential for the world. Environment depends only on nature. If nature is prosperous and balanced, then the environment will also be good and the weather will also be adjusted in a timely manner. It is important to have trees to avoid natural disasters and to make the environment pure. It is clearly written in the Puranas that by applying a tree, virtue is attained, as is the achievement of ten virtuous sons. Therefore, the way we raise our children with great dignity, by the same grandeur, we should learn to love our children as well as plant plants in our lives by learning from the personality of Savitri Devi. Of course, we are not as virtuous as Savitri Devi, but even then we should try to achieve virtue by planting trees.
   Mrs. Savitri Devi has been awarded the "Rudra Gaurav Samman 2018". It is the honor of all nature lovers who are constantly trying to protect it by worrying about nature.)
   

Wednesday, August 22, 2018

चिपको आंदोलन की सूत्रधार गौरा देवी




अनिरुद्ध पुरोहित
(स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार)



वर्तमान में पूरी दुनिया लगातार बढ़ रहे वैश्विक तापन के स्तर से चिन्तित है। पर्यावरण असंतुलन, अनिश्चित मात्रा में कट रहे पेड़, वाहनों की संख्या में हो रहा इजाफा, ए.सी एवं फ्रिज का बढ़ता उपयोग एवं वैश्विक तापन में वृद्धि से सिकुड़ते ग्लेशियर इसका प्रमुख कारण है। 
    हालांकि पर्यावरण संपूर्ण विश्व में एक संवेदनशील मुद्दा है। पर्यावरण को लेकर समय-समय पर अनेक चिंताए, इसे समृद्ध एवं स्वच्छ बनाने के लिए अनेक ग्लोबल सम्मिट एवं गोष्ठियों का आयोजन होता रहता है। 

     माना जाता है कि भारत में ही सर्वप्रथम पर्यावरण को बचाने के लिए जनसहभागिता हुई। हरे पेड़ों को काटने के विरोध में सबसे पहला आंदोलन उत्तराखंड के चमोली जनपद में 26 मार्च, 1974 को ‘चिपको आंदोलन’ के रूप में प्रारम्भ हुआ, जिसका नेतृत्व ग्राम रैणी की वीरांगना गौरादेवी ने किया था । गौरादेवी का जन्म 1925 में ग्राम लाता, जोशीमठ (उत्तरांखण्ड) में और विवाह 12 वर्ष की उम्र में ग्राम रैणी के मेहरबान सिंह से हुआ लेकिन 22 वर्ष की उम्र में ही उनके पति का देहावशान हो गया। इसके बाद गौरा देवी अकेले ही अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए मेहनत-मजदूरी करने लगी। कालांतर में संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश सरकार ने जंगलों को काटकर अकूत राजस्व बटोरने की नीति बनाई। जंगल कटने का सर्वाधिक असर पहाड़ की महिलाओं पर पड़ना तय था क्योंकि जंगल ही उनके लिए घास और लकड़ी प्राप्त करने के मुख्य साधन होते थे। लेकिन लखनऊ और दिल्ली में बैठे निर्मम प्रशासकों को इन सबसे क्या लेना था, उन्हें तो प्रकृति द्वारा प्रदत्त हरे-भरे वन अपने लिए संशाधनों की अकूत सम्पदा नजर आने लगे थे।  गांव की महिला गौरादेवी का मन इससे उद्वेलित हो रहा था। 26 मार्च, 1974 को गौरा ने देखा कि मजदूर बड़े-बड़े आरे (पेड़ काटने का औजार) लेकर ऋषिगंगा के पास देवदार के जंगल काटने जा रहे थे। अतः गौरादेवी ने एक योजना बनाई और शोर मचाकर गांव की सभी महिलाओं को बुलाकर जंगल की ओर चढाई कर दी। पेड़ों को काटने के विरोध में सब महिलाएं पेड़ों से लिपट गयीं। उन्होंने ठेकेदार को बता दिया कि उनके जीवित रहते जंगल नहीं कटेगा। ठेकेदार ने महिलाओं को समझाने और फिर बंदूक से डराने का प्रयास किया पर गौरादेवी ने साफ कह दिया कि कुल्हाड़ी का पहला प्रहार उसके शरीर पर होगा, पेड़ पर नहीं। ठेकेदार और उनके साथी महिलाओं के इस अदम्य साहस को देख पीछे हट गए और हथियार डालने पर मजबूर हुए। गौरा देवी और उनकी साथी महिलाओं का यही प्रयास ‘चिपको आंदोलन’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कुछ ही दिनों में यह आंदोलन आग की तरह पूरे पहाड़ में फैल गया। आगे चलकर चंडीप्रसाद भट्ट तथा सुंदरलाल बहुगुणा जैसे समाजसेवियों के जुड़ने से यह आंदोलन विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया।



   26 मार्च 2018 को इस आंदोलन की 45वीं वर्षगाँठ  देश और खासकर उत्तराखण्ड में विशेष रूप से मनाई गई। इस अवसर पर सर्च इंजन गूगल ने भी "चिपको आंदोलन" को अपना डूडल समर्पित कर चिपको आंदोलन की सूत्रधार गौरा देवी को श्रद्धांजलि दी है। हम सभी को गौरा देवी के इस साहसिक कार्य से प्रेरणा लेकर वर्तमान परिदृश्य में भी पर्यावरण को बचाने के लिए ऐसे ही आंदोलन खड़ा करने की आवश्यकता है जिससे कि पहाड़ के जल, जंगल व जमीन को दलालों के हाथों में जाने से रोका जा सके।


क्या रिवर्स पलायन करा पाएगी सरकार ?

Rivers Migration एक चुनौती !

अनिरुद्ध पुरोहित
(स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार)


सुविधाओं के अभाव में भारतीय नागरिकों की अपने मूल स्थान से सुविधायुक्त स्थानों की तरफ पलायित हो जाने की जब भी चर्चा होती है, सभी पर्वतीय एवं पलायनवादी राज्यों में उत्तराखंड शीर्ष स्थान पर होता है। इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला, उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में सुख सुविधाओं; अर्थात शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार का अभाव और दूसरा, आपदाओं का  यहां के निवासियों पर अत्याधिक बोझ। हर वर्ष उत्तराखंड किसी-न-किसी आपदा को लेकर राष्ट्रीय सुर्खियों में रहता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि यह समस्या केवल उत्तराखण्ड में ही है, लेकिन हाल ही में उत्तराखण्ड के ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की ओर से प्रकाशित हुई पहली 'अंतरिम पलायन रिपोर्ट' भयावह तस्वीर को उजागर करने वाली है। इस रिपोर्ट में साफतौर पर कहा गया है कि राज्यनिर्माण के बाद से यहां के अधिकतर निवासियों ने सुख-सुविधाओं के अभाव में अपना घर-बार छोड़ राज्य के बाहर या राज्य के सुविधासम्पन्न शहरों को अपना नया ठिकाना बना  दिया है। पलायन के स्वरूप में विस्तार होने से एक नईं समस्या ने भी जन्म ले लिया है। हश्र यह है कि, जिन शहरों में लग्जरी लाइफ का सपना लिए लोग पलायित होकर गए थे, वहां जनसंख्या विस्फोट (1 वर्ग किलोमीटर में क्षमता से अधिक लोगों का होना), अत्यधिक ट्रैफिक और प्रदूषण जैसी समस्याओं ने विस्तारित रूप में अपने पांव पसार लिए हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद सरकार रिवर्स पलायन अर्थात जो लोग गाँव छोड़ पलायन कर शहरों में आए हैं, उन्हें आवश्यक सुविधायें मुहैया कराकर वापस अपने मूल स्थान भेजने को लेकर चिंतन करती दिखाई दे रही है। अब सवाल यह है कि क्या वास्तव में रिवर्स पलायन सम्भव है ? इसका जवाब हां में दिया जाय तो गलत नहीं होगा लेकिन कुछ शर्तों को पूरा करने के साथ ही यह जवाब देना तर्कसंगत प्रतीत होता दिखाई देगा। रिवर्स पलायन की पहली और मूल शर्त यही होगी कि पहाड़ में मूलभूत सुविधाओं का युद्धस्तर पर विकास किया जाय, जिससे लोगों को अपनी समस्याओं को निचले स्तर पर ही सुलझाने का अवसर प्राप्त हो सके।  दूसरी मौलिक शर्त की बात करें तो राज्य के निवासियों को ग्रामस्तर पर ही ऐसा प्रशिक्षण दिया जाय कि वह राज्य की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक (कृषि) व द्वितीयक (निर्माण एवं विनिर्माण) क्षेत्रकों में काम कर लाभ कमाने के काबिल बन सकें । राज्य के लिए तीसरी चुनौती आदमखोर वन्यजीवों जैसे: बंदर, सुअर, नरभक्षी बाघ आदि पर नियंत्रण लगाने की होगी। क्योंकि वीरान पड़ते गांवों में अब आदमखोर वन्यजीव अपना बसेरा बनाने लगे हैं। चौथी प्रमुख शर्त आपदा प्रबंधन करने और इससे निपटने की होनी चाहिए, जिसके लिए मुस्तैद सुरक्षा दल और तकनीक का सामंजस्य बेहद जरूरी होना चाहिए।



Rivers Migration एक चुनौती !


   गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार पहाड़ के लोगों को रोजगार एवं मूलभूत आवश्यकताओं के विकास हेतु संसाधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयासरत है जैसे कि, राज्य की महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रसाद योजना, गामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होम स्टे योजना, ग्रोथ सेंटरों का निर्माण, पिरूल नीति आदि-आदि। लेकिन यह प्रयास कछुआ गति से और बिना किसी नियोजन के किया जा रहा है, जो कि सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया है। अगर वास्तव में सरकार रिवर्स पलायन की अवधारणा को जमीन पर उतारने के लिए उत्सुक है, तो उसे उपरोक्त उल्लिखित समस्याओं का शीघ्रातिशीघ्र निवारण करना चाहिए और इसके लिए एक विजन बनाना चाहिए, तभी यह कार्यक्रम सफल हो पायेगा। अन्यथा इसे भी पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यक्रमों की ही तरह 'कोरी घोषणा' करार देने में लोग कतई परहेज नहीं करेंगे। 


क्या रिवर्स पलायन करा पाएगी सरकार ?

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