Monday, August 6, 2018

भगवान बद्री नारायण जी की आरती का असल लेखक कौन ?

जय बद्री विशाल !


चर्चा में क्यों :

   आजकल पूरे देश में भारत के चारधामों में से एक धाम
अनिरुद्ध पुरोहित
(स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार)
भगवान बद्रीनाथ जी की स्तुति/आरती चर्चा का विषय बनी हुई है। बद्रीविशाल की आरती के चर्चित होने का कारण इसके वास्तविक लेखक की पहचान सम्बन्धी विवाद है। अब तक यह माना जाता था कि चमोली जनपद के नंदप्रयाग निवासी 'नसरुद्दीन' या 'बदरुद्दीन' ने बद्री विशाल की आरती 'पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम्' की रचना की है। लेकिन हाल के दिनों में आरती से संबंधित कुछ नए तथ्य तथा पौराणिक पांडुलिपियां सामने आई हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के तल्ला नागपुर पट्टी के सतेराखाल क्षेत्र के अंतर्गत स्यूपुरी गाँव के 'महेंद्र सिंह बर्त्वाल' ने बद्रीनाथ भगवान की आरती की पांडुलिपियों के आधार पर दावा किया है कि यह आरती 'बदरुद्दीन' नामक व्यक्ति ने नहीं बल्कि उनके परदादा 'ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल' ने लिखी है। 'महेंद्र सिंह' का कहना है कि उनके परदादा क्षेत्र के मालगुजार तथा अत्यधिक विद्वान व्यक्ति थे। उनके अनुसार, वर्ष 1881 (लगभग 137 साल पहले) में इस स्तुति की रचना उनके परदादा ने की थी, जिनके साक्ष्य उनके पास हस्तलिखित भोजपत्रीय पांडुलिपि के रूप में उपलब्ध हैं।





वर्तमान आरती और पांडुलिपि के पदों में अंतर :

   गौरतलब है कि वर्तमान में गायी जाने वाली बद्रीविशाल की आरती में केवल 7 पद हैं जबकि हाल में सामने आई पांडुलिपि में कुल 11 पद हैं और आज गायी जाने वाली आरती का पहला पद इस पांडुलिपि में 5वां पद है। अर्थात इस पांडुलिपि में वर्तमान में गायी जाने वाली आरती से 4 पद अधिक हैं। वर्तमान आरती और पांडुलिपि में काफी हद तक समानता है लेकिन इसमें कुछ पंक्तियों तथा शब्दों में भिन्नता है तथा प्राप्त हुई पांडुलिपि में कुछ शब्दों का भी प्रयोग क्षेत्रीय भाषा में भी किया गया है।

ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल जी द्वारा 1881 में लिखित 11 पदों की बद्रीनाथ जी की आरती ।


कौन था बदरुद्दीन :

   अब तक इस आरती के रचयिता के रूप में मुस्लिम भक्त 'बदरुद्दीन' का नाम सामने आता है। 'बदरुद्दीन' कौन था, इस सम्बंध में ऐतिहासिक पड़ताल करने पर कुछ रोचक जानकारियां सामने आई हैं। 'बदरुद्दीन' पोस्ट मास्टर के पद पर कार्यरत थे और सबसे रोचक तथ्य यह कि, 'बदरुद्दीन' का परिवार जन्मजात मुस्लिम नहीं था। 'बदरुद्दीन' के पूर्वज 'गौड़ ब्राह्मण' थे और पौड़ी जिले के जयहरीखाल क्षेत्र के किमोली फलदा के निवासी थे। 'बदरुद्दीन' के एक पूर्वज 'मनु गौड़' ने वहां रहने वाले मुस्लिम खान परिवार की एक लड़की से शादी कर ली थी। चूंकि, 'मनु गौड़' ब्राह्मण जाति के थे और मुस्लिम लड़की से शादी कर चुके थे; इसलिए उनकी जाति के लोगों ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया और वे अपनी प्रतिष्ठा के खातिर पौड़ी से चमोली और फिर नंदप्रयाग जा बसे। 'बदरुद्दीन' का व्यक्तित्व अत्यधिक भक्तिवान होने के कारण वे हिन्दू लोक त्यौहारों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे और रामलीला में संगीत मास्टर का कार्य भी करते थे ।



व्यापक शोध की आवश्यकता :

   बहरहाल भगवान बद्री नारायण जी की आरती के असल रचयिता कौन हैं, इस पर व्यापक शोध के बाद ही प्रामाणिक तथ्य सामने लाए जा सकते हैं । लेकिन इस प्रश्न की 'कि अगर बदरुद्दीन इस आरती के लेखक नहीं थे तो उनका नाम कैसे प्रचलित हुआ और ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल वास्तव में इस आरती के रचयिता थे तो उनके नाम को प्रसिद्धि न मिलकर बदरुद्दीन को क्यों असल लेखक माना गया' पर भी राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर व्यापक बहस एवं शोध की आवश्यकता है। 


सरकार से अपील :

   इस विषय के करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े होने के कारण भारत सरकार, उत्तराखंड सरकार, संस्कृति विभाग और पुरात्ववेत्ताओं से आग्रह है कि वे इस विषय पर गहन शोध करवाएं और बद्रीनाथ जी की स्तुति के वास्तविक लेखक को विश्वस्तर पर पहचान दिलाएं।

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