Wednesday, August 22, 2018

मोबाइल और उसका आभामण्डल



वर्तमान परिदृश्य में समय की मांग कुछ ऐसी है कि बिन 
अनिरुद्ध पुरोहित
(स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार)
मोबाइल एक दिन व्यतीत करना, यूपीएससी की परीक्षा
पास करने से भी ज्यादा कठिन हो गया है । वर्तमान दौर में हम लोग अति एडवान्स हो चले हैं। आप सभी को अच्छी तरीके से याद होगा कि जब तक हम इस आभासी दुनिया के संपर्क में न थे, तब कितना प्रेम हुआ करता था । लोग नियमित रूप से चिट्ठी-पत्री लिखा करते थे और उसका जबाव भी लोग अपनी कुशल-क्षेम के साथ दे दिया करते थे। आज यह हश्र है कि मानव जीवन खामखा ब्यस्त जीवन कहलाने लगा है । लोग वास्तव में ऑफलाइन होते हुए भी खुद को ऑनलाइन साबित करना चाहते हैं; वो खुद को यूनिवर्स का अतिव्यस्त मानव घोषित करना चाहते हैं।


   आजकल मानव जीवन पद्धति को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने के लिए सर्वाधिक बोलबाला चलवाणी (mobile) और अंतर्जाल तंत्र (internet) का है । यह सबका हमदर्द, हमसफ़र और जिगर का टुकड़ा हो चला है। इसे हर मानव आजकल अपने सीने से लगाकर सोने की आदत बना चुका है । हाल यह है कि इसे मानव अपनी दिनचर्या व्यतीत करने का प्रमुख साधन मानने लगा है। 


   ऐसा भी नहीं कि इसके सभी परिणाम दुष्प्रभावी हैं। यह असल जिंदगी में भी अति उपयोगी है, लेकिन तभी तक, जब तक यह अपनी सीमा लाँघ नहीं देता। आज विश्वभर में इंटरनेट के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य एवं न्याय जैसी मूलभूत समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। ई-शासन, ई-हॉस्पिटल, ई-नाम एवं ई-कोर्ट इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यह वैश्विक मंच पर सोशियल संवाद का जरिया बन चुका। लेकिन इस मशीन के अनावश्यक अतिउपयोग को वर्तमान में कुछ मनोविज्ञान के जानकार महामारी के रूप में देख रहे हैं; वो मानव और खासकर नवसृजित पीढी में मोबाइल से होने वाले दुष्प्रभाव से चिंतित हैं। जानकार मानते हैं कि मोबाइल के कारण मनुष्य में अनेक बदलाव आने लगे हैं। इंसान की सोच, काम करने का तरीका और उसका व्यवहार जेब में फिट बैठने वाली मशीन ने बदल कर रख दिया है। इंसान खुद में ही खोया-खोया सा रहने लगा है। सामने बैठे इंसान से उसे रत्ती भर मतलब नहीं, चाहे वो उसका सगा ही क्यों न हो। उसे खाने से मतलब नहीं; उसे अपने शरीर, अपने पहनावे से मतलब नहीं। हद तो तब होती है जब दो दिन तक बिजली गुल होने के कारण मोबाइल बैटरी खत्म हो जाती है और वह बावला हो जाता है। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि उसने बैटरी चार्ज न होने के कारण अपनी बहुमूल्य वस्तु या फिर अपना जीवन ही खो दिया हो।

   अब एक वाजिब सवाल यह है कि क्या वास्तव में लोग मोबाइल से अपने ऑफिशियल या जरूरी काम करने के लिए 24×7 की आदत बना चुके हैं; या फिर, यह खुद को व्यस्त बताने की अवधारणा गढ़ने के लिए एवं गलत कामों को अंजाम देने के लिए किया जा रहा है। इस सवाल के जवाब तलाशने की जरा सी कोशिश भर से ही आश्चर्यजनक आंकड़ो की भरमार सामने आ जाती है। विश्व भर के आंकड़ो पर नजर दौड़ाई जाए तो पूरे विश्व में मोबाइल का सम्पूर्ण रूप से सदुपयोग करने वालों से ज्यादा  दुरुपयोग करने वाले लोगों की संख्या हो चुकी है। और यह आंकड़े और भी चिंतित करने वाले हैं कि  दुरुपयोग करने वालो में सर्वाधिक संख्या युवाओं की है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अपने देश में भी आधे से अधिक युवा यूजर्स, मोबाइल और इंटरनेट का गलत कामों में इस्तेमाल कर रहे हैं । 



  
   इसी परिप्रेक्ष्य में आज यह देखना आवश्यक हो गया है कि आपका लाडला या लाडली चाहे फेसबुक पर बैठे हों या ट्विटर पर, या फिर किन्हीं बेवसाइट्स को खंगालने पर, वे वहां कर क्या रहे हैं ? क्या वह काम की जानकारी जुटाने में लगे हैं या वे मनोरंजन या फिर चैटिंग करने में ब्यस्त हैं, यह देखना अतिआवश्यक है। पूरे विश्वभर में 60 प्रतिशत युवा इसका रचनात्मक उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग आपराधिक एवं आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने लिए भी मोबाइल एवं इंटरनेट का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। स्पष्ट है कि मोबाइल पर ब्यस्त रहने वाले आधे से अधिक लोग अपना समय बरबाद कर आभासी जीवन जी रहे हैं । जो कि मानव जीवन की रचनात्मकता एवं उसके नवोन्मेष करने की प्रवृत्ति पर गहरी चोट है।



   
   कुछ वैज्ञानिक एवं डॉक्टर मानते हैं कि भविष्य में स्थिति और अधिक गंभीर होगी। लोग एक दूसरे से बात करने के बजाय मोबाइल से खेलना पसंद करेंगे। बहरहाल, आंकड़ें कुछ भी हों, मनुष्य अपने परिवार एवं सामाजिक जीवन को छोड़कर मोबाइल को ही अपना "भगवान" मानने लगा है और आभासी जीवन जीने के लिए मजबूर हो चुका है, यही सत्यता है। और इसके भविष्य में क्या प्रभाव या दुष्प्रभाव होंगे, यह हमें समय पर ही छोड़ना देना उचित होगा ।

1 comment:

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