|
अनिरुद्ध पुरोहित (स्वतन्त्र लेखक एवं टिप्पणीकार)
|
जब पूरे विश्व में मानव विकास के सम्बंध में ऊहापोह की स्थिति हो, हर व्यक्ति अपने विकास पर फोकस्ड हो तो 'इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे' की प्रासंगिकता को समझना जरूरी है। इन दिवसों के अवसर पर सोशल मीडिया में "मित्र विचारों" का ट्रैफिक उमड़ पड़ता है। आइये जानते हैं कब, क्यों और कहाँ से शुरू हुआ फ्रेंडशिप डे और वर्तमान भौतिकवादी युग में कितनी प्रासंगिकता रह गयी है इस दिवस की ....
फ्रेंडशिप डे की शुरुआत :
'फ्रेंडशिप डे' की शुरुआत 1935 में अमेरिका से हुई थी। कहा जाता है कि अगस्त के पहले रविवार को अमेरिकी सरकार ने एक निर्दोष व्यक्ति को मार दिया था, जिसके दु:ख में उसके दोस्त ने आत्महत्या कर ली। जिसके बाद दक्षिणी अमेरिकी लोगों ने 'इंटरनेशनल 'फ्रेंडशिप डे' (International Friendship Day) मनाने का प्रस्ताव अमेरिकी सरकार के समक्ष रखा। इस हादसे के बाद लोगों के इस प्रस्ताव को सरकार ने पहले तो मानने से बिलकुल मना कर दिया था लेकिन उनके गुस्से को शांत करने के लिए बाद में अमेरिकी सरकार ने लगभग 21 साल बाद 1958 में ये प्रस्ताव मंजूर कर लिया, जिसके बाद अगस्त के पहले रविवार को 'फ्रेंडशिप डे' मनाने का चलन शुरू हो गया।
भारत में फ्रेंडशिप डे :
भारत में 'फ्रेंडशिप डे' अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है। 'फ्रेंडशिप डे' मनाने का चलन वैसे तो पश्चिमी देशों से शुरू हुआ, लेकिन भारत में भी पिछले कुछ सालों से युवाओं के बीच ये काफी लोकप्रिय हो रहा है। लोग इस दिन एक-दूसरे को ग्रीटिंग कार्ड, सोशल मीडिया और एसएमएस के जरिए बधाइयां देते हैं।
मित्र और वास्तविक मित्र :
यूँ तो आज की पीढ़ी के पास दोस्त बनाने के अनेक माध्यम उपलब्ध हैं, लेकिन क्या वास्तव में ये दोस्त, दोस्ती निभाते हैं। जगजाहिर है कि जीवन में अच्छे मित्रों का साथ हमें ऊँचाइयों पर पहुंचने में मददगार होता है। लेकिन 21वीं सदी की यौवन पीढ़ी सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने में मशगूल है। नवपीढी के अच्छे 'मित्र' हों, इसमें शंका है। हाँ, अच्छे 'वर्चुअल फ्रेंड्स' हो सकते हैं.....फेसबुकी फ्रेंड्स। ऐसे फ्रेंड्स जो आपकी फीलिंग सेड और फीलिंग इलनेस को भी लाइक (पसंद) कर खेद जताते हैं। आधुनिकीकरण और अत्यधिक शहरीकरण की होड़ ने मित्रता और मित्रों को भी शहरी बना दिया है। मेरे युवा मित्र शायद सहमत न हों मगर वास्तविकता यह है कि उनकी 'मित्रता' की अवधारणा और वास्तविक 'मित्रता' की अवधारणा में बुनियादी फर्क आ गया है। इंटरनेट से उपजी यह पीढ़ी सोशल मीडिया पर चैटिंग, बार में मस्ती, डिस्को-डांस और देर रात खत्म होने वाली पार्टियों में साथ-साथ उठने-बैठने, घूमने और साथ-साथ 'वीक-एंड' मनाने, न्यू इयर सेलीब्रेट करने और बर्थडे पार्टी मनाकर एक दूसरे का झूठा केक खाने भर को ही 'दोस्ती' समझने लगे हैं। इसीलिए इन्हें स्वयं पता नहीं कि कब छोटी सी बात पर कहासुनी होने पर इनकी मित्रता पर ब्रेक लग जाय और फेसबुक स्टेटस आ जाय "फीलिंग हार्टब्रोकन" !
क्या होता है दोस्त का मतलब :
हमारी नजर में दोस्त उस व्यक्ति को कहा जाता है, जो हमें घुमाए, फिराए, फिल्म दिखाए, खाना खिलाए, मौज-मस्ती कराए, हमारे सारे शौक-मौज पूरे करे, वो भी अपने पैसों से। इस तरह के व्यक्ति को हम आज के समय में दोस्त कहते हैं। लेकिन क्या सही मायने में यह हमारे दोस्त बनने लायक हैं भी या नहीं? मेरी नजर में दोस्त उस व्यक्ति को कहेंगे, जो आपके सुख के समय में भले ही साथ न हो, पर दु:ख के समय में आपका साथ दे।
दोस्ती का सही मायनों में अर्थ :
'दोस्ती' शब्द दो लोगों के मध्य एक विश्वास है, जो आज के समय में महज 'एक नाम और भद्दा मजाक' बनकर रह गया है। दोस्ती का सही अर्थ आज तक कोई नहीं समझ पाया है। सही मायने में दोस्ती वह है जिसमें आपका दोस्त आपके सद्गुणों को दिखाए और आपके अवगुणों को छुपाकर रखे। किसी भी अनजाने व्यक्ति के सामने आपका मजाक न बनाए और शर्मिंदा न करे। दोस्ती की सही मिसाल तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की है। सुदामा भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र तथा भक्त थे। वे समस्त वेद-पुराणों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मण थे। श्रीकृष्ण से उनकी मित्रता ऋषि सांदीपनि के गुरुकुल में हुई थी। इन दोनों की दोस्ती के किस्से हम आज तक याद करते आ रहे हैं।
क्या होती है सच्ची मित्रता :
मित्रता में एक ऐसा साथ हो, जो पूजा की तरह पवित्र व सात्विक हो और सर्वथा निर्विकार हो। ऐसा अपनत्व जो मन की गहराइयों को छूकर हमारी धमनी और शिराओं में हमें महसूस हो और हमारी हर धड़कन के साथ स्पंदित हो... यकीनन ये सब भावना के आवेग से उपजे शब्द प्रतीत हो सकते हैं, मगर हर उस व्यक्ति को जिसकी जिंदगी में कोई सच्चा 'मित्र' रहा हो, उसे यह अपनी ही बात लगेगी।
खलील जिब्रान ने कहा है- 'एक सच्चा मित्र आपके अभावों की पूर्ति है।' यकीनन इस द्वंद्व और उलझनों से भरे जीवन में कुछ पल शांति और सुकून के मिलते हैं। तो वह सिर्फ इस दोस्ती के दायरे में ही। यही वजह है कि शायद ही संसार में ऐसा कोई प्राणी हो जिसका कोई मित्र न हो या कभी न रहा हो।
संस्कृत के श्लोक में परिभाषित मित्रता :
चन्दनं शीतलं लोके, चन्दनादपि चन्द्रमाः ।
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ।।
अर्थात् : संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है ।